Monday, 10 June 2019
Wednesday, 5 June 2019
विश्व पर्यावरण दिवस-सचेत होने का एक और दिन
विश्व पर्यावरण दिवस-सचेत होने का एक और दिन
~ अनुपम जायसवाल
दोस्तों,
बुद्धिजीविओं, पर्यावरणविदों आपको
मेरा यानि अनुपम जायसवाल का नमस्कार,
मिले
हवा और पानी शुद्ध,
हम भी होते गौतम
बुद्ध, बचपन में गोरखपुर के एक पार्क
में कई सारे पढ़े
हुए कोट्स में ये आजतक मुझे
याद रहा |
ये
शायद मेरे स्वाभाव के बिलकुल नज़दीक
था इसीलिए इसने मेरे दिल में एक ख़ास जगह
बनाली |
मैं
शायद कोई पर्यावरणविद तो नही पर
पर्यावण को समझना और
उसके मुताबक अपनी जीवनशैली को ढालना मैंने
बचपन में ही सीख लिया
था, पर अफ़सोस दुनियाभर
के तमाम प्रयासों के बावजूद हम
आज अपना पर्यावरण खोने को विवश हैं
|
इस
समस्या की जड़ में
कहीं न कहीं थोड़े
थोड़े हम सब जिम्मेदार
हैं |
हरियाली
को निगलती विकास की काली सड़कें,
सैंकड़ों साल लगाकर प्रकृति ने जो वृक्ष
उगाये थे उन्हें मिनटों
में दानवाकार मशीनों की मदद से
काट फेंका जाता है, और उनके ठूंठ
लोगों को दिखाने की
लिए वहीं छोड़ दिए जाते हैं, शायद इसी को कहते हैं
चोरी और सीना जोरी
|
ये
वो तमगे हैं जो आपको ये
याद दिलाते हैं की आपके पर्यावरण
से , आपसे , आपके बच्चों से चंद सांसें
छीन ली जाने वाली
हैं |
पहली
पर्यावरण को साफ़ करने
का काम जो वो वृक्ष
कर रहे थे अब वो
नही रहे , दूसरे अब विकास की
काली सड़कें अब जम कर
धुवाँ उगलेंगी और अज़गर बनकर
हमारे पर्यावण को थोड़ा थोड़ा
करके निगलना शुरू कर देंगी|
वर्ल्ड
हेल्थ आर्गेनाइजेशन की एक रिपोर्ट
ये कहती हैं की ३२८८९ लड़कियां
और २८०९७
लड़के जिनकी आयु पांच वर्ष से कम थी
२०१६ में प्रदूषण की
भेंट चढ़ गए , यानि
कुल ६०९८७ नौनिहालों को प्रदूषण ने
२०१६ में निगल लिया और ये आंकड़ा
सिर्फ हमारे देश का हैं , विश्व
में सब्से ज्यादा|
हमने
इस पृथ्वी और इसपे रहने
वाले सभी जीवों पर अभूतपूर्व संकट
खड़ा कर दिया हैं
, ये पृथ्वी, जो तमाम जीव
हमारे अलावा इसपर निवास करते हैं उनकी भी इतनी ही
हैं जितनी की हमारी |
पर
अब बिना पैर, दो पैर , तीन
पैर , चार पैर, पांच पैर, छै पैर, आठ
पैर, सैंकड़ों पैर वाले सभी जीव, हम दो पैर
वाले जीवों की दया पर
निर्भर हो चुके हैं
|
हम
शायद अच्छी तरह से ये बात
जानते हैं की इकोसिस्टम की
किसी भी कड़ी का
टूट जाना, महा विनाश का कारन बन
सकता हैं , पर भाड में
जाए इससे हमें क्या , हम तो पेस्टिसाइड
का जम कर इस्तेमाल
करेंगे, कीटों को जड़ से
मिटा देंगे, भले ही हमें सब्जियों, अनाजों
और फलों की रूप में में जहर क्यों ना खाना
पड़े | |
पर शायद हम
ये नही समझ पा रहे की आने वाले समय में तो शुद्धता का पैमाना ये बन जायेगा की फल, सब्जी
वहॉ शुद्ध हैं जिसमे कीड़े लगे हैं, साफ़ और चमकता फल हुए सब्जियां जहर से भरी हुई हैं
अगर वो साफ़, सुरक्षित और चमकदार दिखती हैं |
ग्लोबल
वार्मिंग , सदियों से जमे हिम
खण्डों का पिघलना विकास
कि नही बल्कि विनाश कि सूचक है
पर हम शायद इसे
नज़रअंदाज़ कर रहे हैं
क्या
यही हमारी नियति हैं ? या अभी भी
कुछ बदला जा सकता हैं
?
मेरा
मानना हैं कि अब काफी देर
हो चुकी है| हम तथाकथित विकास
या सीधा कहें कि विनाश कि
रस्ते पर बहुत दूर
निकल आये हैं , पर इंसान कभी
भी हिम्मत नही हारता सम्मिलित प्रयास ज़रूर कुछ ठीक कर सकता है
|
आप
खुद भी करें और
बच्चों को भी सिखाएं
:
१.
पीने का पानी बेहतर
ढंग से इस्तेमाल करना
की वो आने वाली
पीढ़ियों को भी नसीब
हो पाए
बर्तन
धुलते समय अनावश्यक पानी ना बहाएं, नित्यकर्म
कि लिए उतना ही पानी इस्तेमाल
करें जितना ज़रूरी हो, अपना घर साफ़ करने
कि नाम पर पानी की
बर्बादी करना बंद करें|
२.
पर्यावरण से जुड़ाव बचपन
से ही होना ज़रूरी
है, हम इसी पर्यावरण
में रहते हैं और भविष्य में
इसी में रहेंगे , ये बात ज़रूरी
है कि हम अपने
पर्यावरण की ज़रुरत समझें
और इसके हिसाब से अपने जीवन
शैली में बदलाव करें |
३.
सुंदरता कि नाम पर
, विकास कि नाम पर
सालों पुराने पेड़ काटना बंद करें , गैरज़रूरी पेड़ काटना बंद करें |
४.
मांसाहार पर अनावश्यक ज़ोर
ना दें |
५.
अपना एयर कंडीशनर को ज़रुरत कि
हिसाब से इस्तेमाल करें,
इसका अंधाधुंध दोहन ना करे , याद
रखें ये पर्यावरण कि
विनाश का सबसे अच्छा
माध्यम है |
६.
पब्लिक ट्रांसपोर्ट का ज्यादा से
ज्यादा इस्तेमाल करें
७. थोड़ी मोड़ी ज़रुरत की सब्जियां अपने घर में ही उगाएं,
बहुत साड़ी स्टार्ट उप ऐसा करने में आपकी मदद करती हैं, उनकी मदद लें
८. आर्गेनिक
खेती को प्रोत्साहित करें और वृक्षारोपण कि कर्यक्रमों में भाग लें , जितने पेड़ आप
लगा सकते हैं लगाएं
याद
रखें ये इस ग्रह
पर रहने वाले प्रत्येक निवासी की जिम्मेदारी है
कि उससे जो भी बन
पड़ता है , जो भी वो
कर सकता है करे|
क्यों
की पहले ही काफी देर
हो चुकी है , कहीं जागते जागते सब कुछ ख़तम
ना हो जाए
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