हर रोज़ सफर पर निकलता हूँ तेरी आँखों में खुद का अक्स छोड़ के
तेरी अलसाई मोहब्बत मुझे धकेलती भी है और रोक भी लेती है
गली के नुक्कड़ से तझे रोज़ मुड़कर देखता हूँ तो लगता है के
कुछ पल और रुक सकता हूँ यूँ ही के दिन अभी इतना भी नहीं चढ़ा
तू कहती तो नहीं पर अब कुछ कुछ पढ़ लेता हूँ तेरी आँखें मैं
के इसीलिए हर शाम लौट आता हूँ तेरे पास फिर अगली सुबह जाने के लिए.....
और एक बार फिर लौट के आने के लिए .......
- अनुपम
तेरी अलसाई मोहब्बत मुझे धकेलती भी है और रोक भी लेती है
गली के नुक्कड़ से तझे रोज़ मुड़कर देखता हूँ तो लगता है के
कुछ पल और रुक सकता हूँ यूँ ही के दिन अभी इतना भी नहीं चढ़ा
तू कहती तो नहीं पर अब कुछ कुछ पढ़ लेता हूँ तेरी आँखें मैं
के इसीलिए हर शाम लौट आता हूँ तेरे पास फिर अगली सुबह जाने के लिए.....
और एक बार फिर लौट के आने के लिए .......
- अनुपम
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